अभिशप्त नदी
इक निर्जला नदी
जैसे अभिशाप से बनी
मरुस्थल के बीच
सूखे रेत के टीले के मध्य अनवरत
बहती हुई
वह अश्रु जो सुखे बहते जा रहे हैं
मेरे गर्भ में
न विष
न अमृत
न ब्रह्मकमल
न स्वाति नक्षत्र में नेत्रों के सीप में
बनने वाले मोती
न कोई नमी...
कभी ऐसा हो युगों पश्चात
आकाश की...
जैसे अभिशाप से बनी
मरुस्थल के बीच
सूखे रेत के टीले के मध्य अनवरत
बहती हुई
वह अश्रु जो सुखे बहते जा रहे हैं
मेरे गर्भ में
न विष
न अमृत
न ब्रह्मकमल
न स्वाति नक्षत्र में नेत्रों के सीप में
बनने वाले मोती
न कोई नमी...
कभी ऐसा हो युगों पश्चात
आकाश की...