...

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ज़िंदगी
212-212-212-212
ज़िंदगी माना नख़रे तेरे कम नहीं
तुझसे थोड़े से भी कम मगर हम नहीं

तू सताएगी क्या ? इतनी कुव्वत कहाॅं ?
तेरी दुश्वारियों में कोई दम नहीं

तू न जानेगी ताकत है कितनी मेरी ?
शोक दिल में नहीं कोई मातम नहीं

माना तू दर्द है दुख है तकलीफ़ है
राहत-ए-जाॅं बने ऐसा मरहम नहीं

सब ने पीया तुझे मैं भी पी जाऊॅंगा
तू मय-ए-नाब है आब-ए-ज़म-ज़म नहीं
© Deepak