...

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वो इश्क़ नहीं था
सावन की वो बरसती शाम, आसमान में घटाए छाई,
देख सावली सूरत पलकें ना झुकीं जब इश्क़ हुआ था!

बिखरे थे जुल्फ कहीं आँखों में हया की लाली छुपाई,
थी, अजीब सी कसीस थी उसमे देख मन बहका था!

अजनबी सी थी वो फिर भी डोर खींचा चला जाता था,
यूँही देख रातके अधेरोमें,मेरा तन खुशबू से महका था!

सूनी सी सड़कों पर भींगी हुईं सहमी सी लड़की,
जिसे देख मेरा दिल पहली पर जोरो से धड़का था!

हवाएं भी जोरो से चल रही थी अपनी रफ़्तार में कहीं,
दुप्पटे का यू चेहरे पर हाथ फेर जाने से तन दहका था!

चाँद की चाँदनी देख,आँखों से चलचित्र कहीं विलुप्त हो
गया,ये तो गहरी नींद का ख़्वाब था वो इश्क़ नहीं था!

© Paswan@girl