विजय - घोष
हिसाब उसकी वफा का, कुछ ऐसा उसने लगाया,
तराजू के एक छोर पर जिस्म, एक में रूह नपाया,
इश्क़ वहां सरेआम, मांस के भाव बिक रहा था,
वहां खड़ा हर व्यक्ति, जगह से नहीं फटक रहा था,
कोई किलो, कोई पोना के मोल पर खरीद रहा था,
हर इंसा वहां हवस की बोली बोल रहा था,
बोटी बोटी, खूं का कतरा कतरा बेच डाला उसने,
उसकी आबरू तार होते देख,...
तराजू के एक छोर पर जिस्म, एक में रूह नपाया,
इश्क़ वहां सरेआम, मांस के भाव बिक रहा था,
वहां खड़ा हर व्यक्ति, जगह से नहीं फटक रहा था,
कोई किलो, कोई पोना के मोल पर खरीद रहा था,
हर इंसा वहां हवस की बोली बोल रहा था,
बोटी बोटी, खूं का कतरा कतरा बेच डाला उसने,
उसकी आबरू तार होते देख,...