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गर तुम सुनो तो बता दें क्या थे जज्बात मेरे,
तुम्हीं से दिल को राहत तुम्हीं हो अल्फाज़ मेरे।
क्या थी तमन्ना क्या तुम जान पाओगे कभी,
क्या कभी समझ पाओगे अहसास मेरे।
कभी लेकर आओ फिर वो चाँदनी सी रातें तुम,
फ़िर नहीं रह जायेंगे दिल में सवालात मेरे।
उफ्फ़ कितने हंसी ख्वाब देख लेते हैं कभी हम भी,
क्या सोच लेने बस से तुम हो जाओगे मेरे।
कोरे कागज़ पे बहक जाते हैं ज़ज्बात मेरे,
अब तुम ही बुन लो चुप से हैं अल्फ़ाज़ मेरे।
© Vinisha Dang