...

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चिलम यादों की सुलगती है।
बुझ जाए भले ही तेरे हुस्न का हुक्का मगर चिलम यादों की सुलगती रहे।
भले ठण्डा हो जाए ज़ालिम ज़माना मगर अलाव में चिंगारी जलती रहे।

इतिहास ग़वाह रहा है सदियों से हवाएँ मुहब्बत की लौ बुझाती रही हैं,
फ़ानूस बना है परवाना हर बार कि महफ़िल में श'मा यादों की जलती रहे।

थक गया है अथक दीदा-वर भी इन ज़ुल्मी पत्थरों को तराशते-तराशते,
बनकर हीरा निखारना कुछ इस तरह, संगतराशी अंग-अंग की चमकती रहे।

है बला की ख़ूबसूरती तेरे ढलते यौवन में भी ऐ मेरी चिराग-ए-रोशनी,
जलना मेरे आशियाने में ऐसे, बुझने के बाद भी रुह आभा की बिखरती रहे।

पी के 'पागल' हूँ तेरे मदमस्त अंग-अंग से छलकती मस्ती भरी मधुशाला,
ख़ुदा करे हो जाऊँ मैं हर जन्म का ग्राहक, तू हाला बन पैमाने में छलकती रहे।

© पी के 'पागल'