...

49 views

!... मैं ता काफिर इश्क में होया...!
कब्र दी जाली चूम दे यार, जाली विच की रखी है
बाहर रौंदे आशिक़, अंदर यार दी महफिल सजदी है

मुर्शिद मेरा हुजरे में, और मैं राग विलापु बाहर बैठ
अल्लाह दिल में, नैनो में, और यार भी घर कर जांदी है

मुर्शिद मेरा इश्क़ है बंदे, मुझे मुर्शिद नाल नहीं रहना है
कितनी सोनी यार दी सूरत, देख के दिल भर जांदी है

मन की बात नहीं है तय्यब रब चार ओ शू तो रहंदा है
मैं ता काफिर इश्क़ में होया, यार मेरा गर रांजी है

बुल्ले बेहलोल हो या मंसूर, सब इश्क नाल मर जांदे है
फिर यार मेरा है सबसे सोना, उसे देख देख ज़ी लेंदा है