...

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Majadur diwas ( Labour day)
वो जो कहते हैं ना।..
की मजदूरी करना या मजदूर होना छोटी बात है।।
तो ये कुछ पंक्तियां उनके लिए.......
के यूं ही नहीं मिलते बने- बनाए मकान।
एक-एक मजदूर के संघर्ष से बनता है मकान।।
के यूं ही नहीं मिटती पेट की भूख।
के यूं ही नहीं आसान उस तपती धूप में तपना पत्थर से पत्थर, ईंट से ईंट मिलाकर वह अपने हूनर को उसके अंजाम तक पहुंचाता है।।
के शून्य नहीं उस पसीने की बूंद की कीमत जो उसके सिर से गिरती है।
वह प्रमाण है उस मजदूर के संघर्ष की जिसकी कोई कीमत नहीं।।
के ये जो मंदिर को सबसे पावन स्थान मानते हैं ना।. वहीं मन्दिर एक -एक मजदूर के हाथों ने ही बनाया है।।
के ये जो भगवान के आगे शीश झुकाते हैं ।
उस भगवान की मूर्ति को एक मजदूर के हाथों ने ही बनाया है।।
"कोई पूछे तो कहना"....
कमजोर कोई नहीं इस जहां में।
सबके पास अपना- अपना हूनर हैं।।
कि है नहीं कोई छोटा- बड़ा काम इस जहां में।
जो भी करो लगन और ईमानदारी से करो उसका फल जरुर मिलता है।।
हर इंसान अपने -अपने क्षेत्र में निपुण हैं।
उसकी कमियों को छोड़कर उसकी खूबियों व उसके महत्व को समझो।।
यही इंसानियत है।।
मजबूर दिवस!!