...

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इंसानियत
गिरा था इक इंसान सड़क पर
हादसे से ज़ख़्मी हालत थीं
नज़र सब की थीं उस मंज़र पर
पर मदद की जगह उन्हें उसे तस्वीर में क़ैद करने की आदत थी

पल पल तड़प रहा था जिस्म उसका
मदद के लिए ज़ुबान भी ना ख़ुल पा रहीं थीं
गाडियां गुज़री कई वहां से लगातार
पर इंसानियत की कोई मिसाल मिल नहीं पा रहीं थी

लोग भागे जा रहें थे छुपाकर नज़र
लाज़िम होगा उनके लिए क्योंकि वो ज़ख़्मी उनका अपना न था
देख वो भी रहा होगा अपनी सांसें गिनते गिनते बेरहमी का मंज़र
वो भी सोच...