...

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ज़ख्म
गैरों से छिपा कर
अपनों से बचा कर
ज़ख्म जो दिल में
बसा कर रखे थे
मुद्दत से न छेड़ा था
जिसको मैनें
आज नासूर बना कर रखे थे
रिस रहा था
जो दर्द
क़तरा क़तरा बन कर
अपनी आंखों में वो
अश्क़ बचा कर रखे थे
शायद काम कर जाए
अब दुआ ही तेरी
वर्ना ज़ख्मे जिगर अब
लाइलाज बना कर रखे थे
© Shivani Singh