...

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द्रौपदी का चीरहरण
द्रौपदी का चीरहरण एक बार नही, सौ बार हुआ,
भरी सभा में भी उस पर अत्याचार हुआ,
मौन तभी थे, मौन अभी हैं,मौन ही रहेंगे,
लेकिन
द्रोपदी के वंशज इस अत्याचार को नही सहेंगे,
उन्हें प्रतिदिन अंगारों पर चलना होगा,
सर उठे जहां कुदृष्टि से
उसे
वहीं कुचलना होगा,
इन हत्यारों का तुम संहार करो,
उर निज अपमान का ज्वार भरो ,
तुम्हीं बनो रणचंडी
और
खड़ग उठाओ
कुंभकर्णी नींद से अब इन्हें जगाओ
दशाें दिशाएं जब हाहाकार करेंगी
स्तब्ध सभाएं तुम्हें स्वीकार करेंगी
तुम्हीं बनो राम अहिल्याबाई का
लो संकल्प शत्रु तबाही का
तुम्हीं ज्वार हो सागर की लहरों का
गिन_गिन बदला लो दुःख की पहरों का
तुम्हीं ने उपजा है अत्याचारी अपनी मूक से
सर_धड़ अलग होना,रह न जाए चूक से,
तुम नई व्यवस्था का आगाज करो
कल से बेहतर अपना आज करो
शासन _सत्ता हाथों में ले अब राज करो
रहे सर्वत्र सम शासन ऐसा काज करो
ऐसा काज करो..

_अन्नू मैंदोला