...

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दुवाएं
मुसलसल जल रही हैं उम्र की शमां,
ज़िन्दगी मोम की तरह पिघल रही है!!

फ़ुज़ूल ना खर्च अपना कीमती वक़्त नादाँ,
ये वक्त की डोर अब हाथो से फिसल रही है!!

ज़रा लगाम तो कस अपने गुनाहों पर इंसान,
देख तेरे जिस्म से रूह निकलने को मचल रही है!!

शुक्र अदा कर ले तू भी कभी उन दुवाओं का,
जिनके उठे हाथो से तेरी साँसे चल रही है!!
© वैदेही

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