चरित्र का सर्वोच्च सोपान
*चरित्र का सर्वोच्च सोपान*
काया की ये उजली धूप, सारी बिखर जाएगी
चमकती हुई ये त्वचा, पूरी ही सिकुड़ जाएगी
रूप की सारी रंगीनियाँ, कल नजर न आएगी
यौवन की ये घड़ियाँ, एक दिन सिमट जाएगी
वक्त जब बदलेगा तो, चेहरा भी बदल जाएगा
दमकता ये रूप लावण्य, कालिमा को पाएगा
शरीर की ये सारी चमक, केवल भ्रम का खेल
आखिर कब तक करोगे, देह संग विकारी मेल
और बढ़ेगी इच्छा तेरी, इंद्रियों का सुख पाकर
इक दिन...
काया की ये उजली धूप, सारी बिखर जाएगी
चमकती हुई ये त्वचा, पूरी ही सिकुड़ जाएगी
रूप की सारी रंगीनियाँ, कल नजर न आएगी
यौवन की ये घड़ियाँ, एक दिन सिमट जाएगी
वक्त जब बदलेगा तो, चेहरा भी बदल जाएगा
दमकता ये रूप लावण्य, कालिमा को पाएगा
शरीर की ये सारी चमक, केवल भ्रम का खेल
आखिर कब तक करोगे, देह संग विकारी मेल
और बढ़ेगी इच्छा तेरी, इंद्रियों का सुख पाकर
इक दिन...