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हे खाँसी
हे खाँसी तेरी अजब गजब है कहानी,
तू तो यूगों से करती आ रही है अपनी मनमानी!
किसी युग में सुनी थी घर में प्रवेश करते हुए मुखिया की खाँसी,
जिसे सुन सतर्क हो जाती थी घर की जनानी!
जल पान भोजन परोसने की शुरू हो जाती थी तैयारी,
घर के मुखिया के आने की खुशी देती थी वो खाँसी!
फिर आई दादाजी की खाँसी,
जिसे सुनकर दौडे आते थे बच्चे, बजाते ताली!
दादाजी क्या लाए हो, होती थी रट लगी,
गुलाबजामुन, इमरती इत्यादि का नाम सुन लार टपकाते थे सभी!
खाँसी अब तू कई रूपों में आती,
साधारण खाँसी या कोरोना की कह सबको डराती!
घर में होती जब किसी को खाँसी,
माँ दादी मां के नुस्खे अपनाती,
बच्चों को काढ़े के साथ थोडी डांट भी लगातीं!
पर कोरोना की खाँसी तो आफत है लाई,
इसने दूर कर दिए सभी सगे संबंधी भाई!
ये खाँसी तो मृत्यु का पैगाम तक ले आई,
प्रार्थना है अब तो इससे मुक्ति दो कान्हाई!
रूचि प जैन
तू तो यूगों से करती आ रही है अपनी मनमानी!
किसी युग में सुनी थी घर में प्रवेश करते हुए मुखिया की खाँसी,
जिसे सुन सतर्क हो जाती थी घर की जनानी!
जल पान भोजन परोसने की शुरू हो जाती थी तैयारी,
घर के मुखिया के आने की खुशी देती थी वो खाँसी!
फिर आई दादाजी की खाँसी,
जिसे सुनकर दौडे आते थे बच्चे, बजाते ताली!
दादाजी क्या लाए हो, होती थी रट लगी,
गुलाबजामुन, इमरती इत्यादि का नाम सुन लार टपकाते थे सभी!
खाँसी अब तू कई रूपों में आती,
साधारण खाँसी या कोरोना की कह सबको डराती!
घर में होती जब किसी को खाँसी,
माँ दादी मां के नुस्खे अपनाती,
बच्चों को काढ़े के साथ थोडी डांट भी लगातीं!
पर कोरोना की खाँसी तो आफत है लाई,
इसने दूर कर दिए सभी सगे संबंधी भाई!
ये खाँसी तो मृत्यु का पैगाम तक ले आई,
प्रार्थना है अब तो इससे मुक्ति दो कान्हाई!
रूचि प जैन
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