26 views
"ठौर"
ना आगाज़ न आखिरी बिंदु हूं
मैं तो मध्यमा में विचरती धुरी हूं!!
न पिता का घर मेरा ठहरा न पति के
घर पर स्थायित्व ठहरीं यहां सांस का राज रहा!!
तो पिता के घर पर हर पल पराया ठहराया गया
अंत:करण में हर पल खुद को तन्हा पाया!!
किस घर को अपना कहें अब नारी,जब हर
किसी ने उसे परायेपन का बोध कराया!!
© Deepa🌿💙
मैं तो मध्यमा में विचरती धुरी हूं!!
न पिता का घर मेरा ठहरा न पति के
घर पर स्थायित्व ठहरीं यहां सांस का राज रहा!!
तो पिता के घर पर हर पल पराया ठहराया गया
अंत:करण में हर पल खुद को तन्हा पाया!!
किस घर को अपना कहें अब नारी,जब हर
किसी ने उसे परायेपन का बोध कराया!!
© Deepa🌿💙
Related Stories
27 Likes
22
Comments
27 Likes
22
Comments