...

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बचपन मेरा दर्पण,,,,
जिंदगी मैं क्या किया ,
दोस्ती की निभाना पड़ा
हसी खिली तो रूलाना पड़ा ,
देखते-देखते आज बड़े हो गए
जिंदगी अपने तरीके से जिने लगे।

शरारती मन को जिना था ,
इसीलिए रुल तोड़दिया ।
पाठशाला में पढ़ा हर पन्ना,
आज काम आने लगा।

ठहरे पानी को बहना था ,
इसीलिए हाथ छोड़ दिया ।
जिंदगी में कुछ करना था ,
पर किस्मत बदल गई ।

हाथ पकड़कर चलते थे वो कदम ,
आज मंजिल खोज रहे ।
गुस्सा करो तो रोते थे ,
आज लेहरो से झुम पड़े ।

रात को आसमान में देखते,
गिनती वो तारो से करते थे।
गलती कर-करके सिखे,
जिदंगी जिने के तरीके।

मौसम में दिन है बदलते,
पर खुशी के पल कभी नहीं ठेहेरते है।
सोचो तो आँखे नम हो जाती है,
आज मुझे मेरी बचपन की याद आती है।

वादा कीया फिर तोड़ दिया,
बचपन के लिए, खुदा तेरा शुक्रिया ।
हो सके तो फिर दे-दे वो बचपन,
आँखे नम होकर केहता है ,
आज मेरा ये दिल का दर्पण ।

"आज ये दिल बहोत गुम-सुम रहेगा,
आँखो से बेहता पानी है।
लोगो से अंजान हे ये दिल
खुशीयों की बहार है,
पर, हर पल पे केहता है।
आज कोई ,
बचपन का मेहमान है "।
© @W.Girija