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मीरा की भक्ति
मीरा की तरह कृष्ण के मधुर गीत में पिरोना,
मैं खो ना जाँऊ कहीं तेरी राहों में घुंघरू बन ढूढ़ना!

कृष्ण तेरी चरणों में सब समर्पण,साथ तेरा होना,
प्रेम का कोई मोल नहीं,अर्पण कर तुझ में ही खोना!

कृष्ण की सांवली सी सूरत देख दूजा कोई ना होना,
नित सुबह शाम करू याद प्रभू फिर काहे को रोना!

अंतिम सांस भी कृष्ण के नाम की है तेरे संग तरणा,
सब तेरे हवाले कर दी है गिरधर मेरे दुःख हरणा!

दुनियाँ के अपशब्द भरे ताने सुनकर भी मुस्कुराना,
प्रेम का विष पीकर भी कृष्ण को अपना माना!

बस सून लो अरज मेरी,दरश दिखाए अपनी कृष्णा,
एक दीदार से मिट जाए प्यास मेरी मृग से भरी तृष्णा!

तेरी एक दरश बिन गिरधर दुःखं से भरे मेरे नैन,
तुम ही बताओ जग के तारणहार तुम बिन कहाँ चैन!

मैं तो गिरधर के प्रेम में मग्न घुँघरू बाँध नाची रे,
हिर्दय में दूजा कोई वास नहीं कृष्णा तेरी मैं दासी रे!

मेरे मन का चितचोर और कोई नहीं गोकुल वासी,
जाके सिर मोर मुकुट सोहे वही मेरा पति अविनाशी!

© Paswan@girl