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मैं मरना चाहती हूं
मैं मरना चाहती हूं

अपने नाम की चिंता क्यों करूं मैं
अच्छा होगा कि सुकून से मरूं मैं
यूं किसी का कत्ल तो किया नहीं
तो जीते जी क्यों बेकार का डरूं मैं।

लोग तो मरने के बाद ही अच्छे लगते हैं
जीते जी तो बस वो सबको जैसे ठगते हैं
और ये चलन तो बरसों से चलता आया है
कि किसी के मरने पर ही सब जगते हैं।

तो कुछ पल के लिए मैं बिखरना चाहती हूं
अपनी असलियत लिए निखरना चाहती हूं
यूं जी कर तो देख लिया है दुख सुख अपना
पर अब बस एक बार मैं मरना चाहती हूं।

Smriti Trivedy
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