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!...कफस के खून को इंकलाब लिखता हूं...!
कैद परिंदो पे मैं तो कलाम लिखता हूं
कफस के खून को इंकलाब लिखता हूं
हरम की दौलत से पीते है मय को बद्दूह
मैं भरी महफिल में तुम्हें गद्दार लिखता हूं
बाग ए गुल पे गिराते है जो अंगारे हरदम
हिटलर ओ चंगेज इन्हे हरबार लिखता हूं
खाक हो जाएगा एक दिन ये ऐशो इशरत
जुल्म की हर हद को मैं नापाक लिखता हूं
ऐ खुदा बाजू ए हैदर अता कर दे मुझको
मैं यहूदियों पे खैबर का नाम लिखता हूं
हक बा हक कायम है अब तक ये गाजी
मैं गाजा के शहीदों को सलाम लिखता हूं
© —-Aun_Ansari
कफस के खून को इंकलाब लिखता हूं
हरम की दौलत से पीते है मय को बद्दूह
मैं भरी महफिल में तुम्हें गद्दार लिखता हूं
बाग ए गुल पे गिराते है जो अंगारे हरदम
हिटलर ओ चंगेज इन्हे हरबार लिखता हूं
खाक हो जाएगा एक दिन ये ऐशो इशरत
जुल्म की हर हद को मैं नापाक लिखता हूं
ऐ खुदा बाजू ए हैदर अता कर दे मुझको
मैं यहूदियों पे खैबर का नाम लिखता हूं
हक बा हक कायम है अब तक ये गाजी
मैं गाजा के शहीदों को सलाम लिखता हूं
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