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मायाजाल
आज मेरे जीवन की अर्धशतक पारी पूर्ण हुई,
इतने अनगिनत समय की धारा में,
न जाने मैंने, समय की कितनी लीलाओं को दृष्टिगत किया।
या यूँ कहो, समय ने मुझे कितनी बारीकी से निरखा।
अतिशयोक्ति न‌ होगी, यदि ऐसा कहा जाए,
कई अवस्थाओं से विचरते हुए मैंने,
जीवन के हर उतार-चढ़ाव को पार करते हुए,
जीवन के ऐसे पड़ाव में पहूँच चुकी हूँ,
जहाँ लगता है यूँ,
कि इस भारी भीड़ में,
आज भी मैं अकेली हूँ।
वैसे यह सोचना,
कि मेरे इर्द-गिर्द, न जाने कितनी अनगिनत भीड़ उपस्थित है,
यह सोचना क्या भूलमात्र नहीं।
जीवन का है यह कटु सत्य,
आए भी अकेले हैं, जाएँगे भी अकेले ही।
इंसा जितनी जल्दी इसे समझ लें,
उतना ही उसे कष्ट होगा कम।
परमसत्य तो, यह है कि,
अपनी आत्मा को, इस माया-मोह के जंजाल से,
जितनी जल्दी निकाल सको,तो
पार पा जाओगे, अन्यथा,
इसी अनसुलझी पहेली में,
उलझ के रह जाओगे।
हो सके तो,
उसे परमात्मा के चरणों में,
कर दे स्वयं को समर्पित,
और कर लो मोक्ष की प्राप्ति।
डॉ अनीता शरण।