...

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"बोतल"
बातों ही बातों में क्या कुछ कह देते हो,
सोचा है कितना -सा दर्द दे देते हो ,
दिल तो शिशा है ,यह तो टूट जाएगा ,
आंखों के आंसू से कैसे जुड़ पाएगा!

तिखी- सी तीर जो हर दिन चलाते हो ,
खून तो बहता नहीं है ,
पर कटाक्ष से मरवाते हो ।

देखो ना तुम भी तो ,
मैं ना कोई गुड़िया हूं ।
तुम्हारे ऐसी बातों की ,
मै ना कोई बंधी पुङिया हूं ।

जरा मेरे जगह तुम भी आओ ,
फटी पड़ी मुझे बचाओ ।
रात को आते हो
"बोतल" के संग आते हो ।
बच्चों पर और मुझे पर ,
तो तुम जुर्म दिखलाते हो।
इसी मर्दानगी से क्या "इठलाते" हो ?
बस इतना ही होता नहीं,
मेरे मां-बाप को गलीयाते हो ,
सोचा है कैसे तुम अपनी प्यारी को मरवाते हो................
© श्रीहरि