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अधर की वेदना
अधर अब मौन है।*
कहने को तो बहुत कुछ है।
कहने ....को तो बहुत कुछ है।
पर अब अधर मौन है।
बढ़ती उम्र,दौर ने अब मौन कर दिया है।
मन व्याकुल है, व्यथित है पर खामोस है।
उठ रहे सवालों मे ढूंढता जवाब है।
शोर शराबो से भरी दुनिया मे भी एकांत है।
शांत है, मौन है, चुपचाप, खामोश है।
मन मे उठते समुंदर की लहरों को करता खामोश है।
कहने को तो बहुत कुछ है। पर अधर अब मौन है।
न है कोई अपना, न कोई पराया है।
फिर भी चंहु और एकांत का साया है।
कहने को तो बहुत कुछ है।
कहने ....को तो बहुत कुछ है।
पर अब अधर मौन है।
बढ़ती उम्र,दौर ने अब मौन कर दिया है।
मन व्याकुल है, व्यथित है पर खामोस है।
उठ रहे सवालों मे ढूंढता जवाब है।
शोर शराबो से भरी दुनिया मे भी एकांत है।
शांत है, मौन है, चुपचाप, खामोश है।
मन मे उठते समुंदर की लहरों को करता खामोश है।
कहने को तो बहुत कुछ है। पर अधर अब मौन है।
न है कोई अपना, न कोई पराया है।
फिर भी चंहु और एकांत का साया है।
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