ज़िम्मेदारी
महज़ चन्द लम्हातों में रूठ ज़ाना कहा वाज़ीब है
हम तो हमेशा से ही फकत इक तेरी ही जानिब है
फ़रमाइश हो कोई कोई नखरा ही सर आँखो पर
नाता तुझसे दिल का गहरा आख़िर तिरे वालिद है
तेरी मायूसी हो या कोई लम्हात खुशी के ही हो
उम्मीद यही कि इक दफ़ा सामने मिरे ज़ाहिर या
आस इतनी ही परवरिश पे मेरी कोई सवाल ना हो
खून मेरे तेरी वजह से ज़िन्दगी में मेरी बवाल ना हों
© V K Jain
हम तो हमेशा से ही फकत इक तेरी ही जानिब है
फ़रमाइश हो कोई कोई नखरा ही सर आँखो पर
नाता तुझसे दिल का गहरा आख़िर तिरे वालिद है
तेरी मायूसी हो या कोई लम्हात खुशी के ही हो
उम्मीद यही कि इक दफ़ा सामने मिरे ज़ाहिर या
आस इतनी ही परवरिश पे मेरी कोई सवाल ना हो
खून मेरे तेरी वजह से ज़िन्दगी में मेरी बवाल ना हों
© V K Jain