...

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ज़िम्मेदारी
महज़ चन्द लम्हातों में रूठ ज़ाना कहा वाज़ीब है
हम तो हमेशा से ही फकत इक तेरी ही जानिब है

फ़रमाइश हो कोई कोई नखरा ही सर आँखो पर
नाता तुझसे दिल का गहरा आख़िर तिरे वालिद है

तेरी मायूसी हो या कोई लम्हात खुशी के ही हो
उम्मीद यही कि इक दफ़ा सामने मिरे ज़ाहिर या

आस इतनी ही परवरिश पे मेरी कोई सवाल ना हो
खून मेरे तेरी वजह से ज़िन्दगी में मेरी बवाल ना हों


© V K Jain