ज़िंदगी।
बड़े ख़्वाब दिखा रही हैं ज़िंदगी,
तू भी मज़े ले रही हैं ज़िंदगी!
मैं रोज़ संवार लेता हूं ज़ख्मों को,
रोज़ नए घाव दे रही हैं ज़िंदगी।
हर गम को एक प्याला शाम का,
हर सुबह जिम्मेदारियां दे रही हैं ज़िंदगी।
एक दरिया आसुओं का भीतर हैं,
एक झूठी मुस्कान चढ़ा रही हैं ज़िंदगी।
मैं अब वह ना रहा पहले सा,जो था,
हर पल नई शक्सियत दे रही हैं ज़िंदगी।
मोड़,करवट,राह,आशियां कांटो के,
बागों में नया गुलाब खिला रही हैं ज़िंदगी ।
एक खुशबू कबसे हैं लापता !
कईं गुलशन मुरझा रही हैं ज़िंदगी।
अब के बार तो झगड़ा होना ही हैं,
कंबख्त मौत से हाथ मिला रही हैं ज़िंदगी।
© वि.र.तारकर.
तू भी मज़े ले रही हैं ज़िंदगी!
मैं रोज़ संवार लेता हूं ज़ख्मों को,
रोज़ नए घाव दे रही हैं ज़िंदगी।
हर गम को एक प्याला शाम का,
हर सुबह जिम्मेदारियां दे रही हैं ज़िंदगी।
एक दरिया आसुओं का भीतर हैं,
एक झूठी मुस्कान चढ़ा रही हैं ज़िंदगी।
मैं अब वह ना रहा पहले सा,जो था,
हर पल नई शक्सियत दे रही हैं ज़िंदगी।
मोड़,करवट,राह,आशियां कांटो के,
बागों में नया गुलाब खिला रही हैं ज़िंदगी ।
एक खुशबू कबसे हैं लापता !
कईं गुलशन मुरझा रही हैं ज़िंदगी।
अब के बार तो झगड़ा होना ही हैं,
कंबख्त मौत से हाथ मिला रही हैं ज़िंदगी।
© वि.र.तारकर.