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बचपन के वह क्या दिन थे...!
बचपन के वह क्या दिन थे, एक समोसा और खाने वाले तीन थे,
ना जातपात ना रिश्तों का बंधन था, जब दोस्त ही कीमती धन थे, बचपन के वह क्या दिन थे।।

दिन भर यारों के संग भटकना,
एक रुपए में सायकल लेकर दिन भर रगड़ना,
ना डर होता मां बाबूजी के मार का,
ना ख्वाहिश होता किसी लड़की के प्यार का,
बचपन के वह क्या दिन थे ।।

चार आने की नल्ली ले चार मिल बांट खाते सब यार,
वह हाफ वाली पैंट
रूपानी की चप्पल
तब कहा था यारों मोबाइल वह एप्पल
फिर भी रोज मिल जाते थे पुराने वाले अड्डे पर
वह नाव चलाना बरसात में गड्ढे पर
बचपन के वह क्या दिन थे ।।

बढ़ती उम्र जवानी में सब खो गया
वह बचपन की शैतानी सपना सा हो गया
मिल जाए अगर चिरागे अल्लादीन
शायद पा जाए बीते दिन हम वह हसीन
बचपन के वह क्या दिन थे।।
{सम्राट}