क्या हो तुम
क्या सुबह क्या शाम मेरी जिंदगी का हर लम्हा तुम्हारे नाम
जब कभी परेशान होती हूं मैं उस पल
को खुशियों से भर देते हो तुम मानो जादू की छड़ी हो
तुम
इस निर्जीव शरीर के प्राण हो तुम
मेरी कलम की स्याही के पहले शब्द का आरंभ हो तुम
मेरी कलम से लिखे वो प्यार भरे अल्फाज हो तुम
अपने कलम से पन्नों पर ता उम्र लिखती रहूं वो एहसास हो...
जब कभी परेशान होती हूं मैं उस पल
को खुशियों से भर देते हो तुम मानो जादू की छड़ी हो
तुम
इस निर्जीव शरीर के प्राण हो तुम
मेरी कलम की स्याही के पहले शब्द का आरंभ हो तुम
मेरी कलम से लिखे वो प्यार भरे अल्फाज हो तुम
अपने कलम से पन्नों पर ता उम्र लिखती रहूं वो एहसास हो...