...

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चुप हूं
चुप हूं जुबा से मैं
खामोशी से ही कहने लगी हूं
अक्सर सुनते नहीं है लोग मुझे
अब खुदको ही मैं सुनने लगी हूं
कई लगे हैं घाव मन में
टूटे हैं सपने क्षण कई में
बोलू किससे मैं अपनी बाते
सुनने वाला न कोई पा रही हूं
इसीलिए अक्सर फिर मैं
चुप ही हो जा रही हूं
बाते तो है लाख दिल में
पर बोल ना किसी को पा रही हूं
जानती हु कोई मुझे समझेगा नहीं
हाल तो पूछ लेंगे मेरा सब
पर साथ कोई खड़ा होगा नहीं
अकेलेपन में मैं अब जीने लगी हूं
दिल के जज्बात अब मैं
खुदसे ही कैहने लगी हूं
सब से दूर होते होते
मैं खुदके करीब होने लगी हूं
चुप हूं जुबां से मैं
अब बस खुदको सुनने लगी हूं
मैं अब बस खुद के लिए ही जीने चली हूं
© tejswii_madavi