मैं पेड़ बोल रही
बहुत कर ली तुम सब ने राजनीति
अब ,कृपया ध्यान दे इधर साहब ,
प्रकृति के विषय को लेकर
क्यों हो इतने लाचार ?
बिना पैसों के देने में परिसेवा
क्या कोई होती काया तैयार ?
पर मैं सदियों से दे रही मुफ़्त
धरती पर श्वास लेने का अधिकार ,
नमस्कार ! मैं पेड़ बोल रही,
मुझसे बड़ा न कोई सरकार |
जी हाँ ! मैं हूँ इकलौती सबकी आधार,
फैलाओ इस पद्य के जरिए समाचार ,
जहां सभी को रखती फल- फूल, सब्जियों से स्वस्थ
वहीं देती इसे बेचने की रोजगार ,
परन्तु सोचों हरियाली...
अब ,कृपया ध्यान दे इधर साहब ,
प्रकृति के विषय को लेकर
क्यों हो इतने लाचार ?
बिना पैसों के देने में परिसेवा
क्या कोई होती काया तैयार ?
पर मैं सदियों से दे रही मुफ़्त
धरती पर श्वास लेने का अधिकार ,
नमस्कार ! मैं पेड़ बोल रही,
मुझसे बड़ा न कोई सरकार |
जी हाँ ! मैं हूँ इकलौती सबकी आधार,
फैलाओ इस पद्य के जरिए समाचार ,
जहां सभी को रखती फल- फूल, सब्जियों से स्वस्थ
वहीं देती इसे बेचने की रोजगार ,
परन्तु सोचों हरियाली...