जीवन के बुझे हुए चिराग़…!!!
नादां उम्र में कर बैठे हम एक गलती…
कुछ इस कदर बुझे फिर खुशियों के चिराग़,
न ही मौत से रूबरू हुए न ही बची जीवन की हस्ती …
नादां उम्र में कर बैठे हम एक गलती।
ये जीवन की शाख उस मुसाहिब के बिना अधूरी है…
उल्फ़त है और रहेगी तुम्हीं से ,
ये जान लो तुम्हारा ये जानना ज़रूरी है।
हमेशा के लिए खो गयी लबों पर से तबस्सुम…
खुदा की इनायत होगी,
एक नज़र भर दिख जाओ अगर तुम।
अंतिम सांसों तक रहेगी पीड़ा- ए- फ़ुर्क़त…
दुआ करते हैं रब से,
दो दिलों में न हो कभी कोई अदावत।...
कुछ इस कदर बुझे फिर खुशियों के चिराग़,
न ही मौत से रूबरू हुए न ही बची जीवन की हस्ती …
नादां उम्र में कर बैठे हम एक गलती।
ये जीवन की शाख उस मुसाहिब के बिना अधूरी है…
उल्फ़त है और रहेगी तुम्हीं से ,
ये जान लो तुम्हारा ये जानना ज़रूरी है।
हमेशा के लिए खो गयी लबों पर से तबस्सुम…
खुदा की इनायत होगी,
एक नज़र भर दिख जाओ अगर तुम।
अंतिम सांसों तक रहेगी पीड़ा- ए- फ़ुर्क़त…
दुआ करते हैं रब से,
दो दिलों में न हो कभी कोई अदावत।...