तुम कौन थे ?
बिखरे थे हम बादलों की तरह,
चाह बस बारिश बन बरस जाने का था
नीचे दरिया को बहते देख,
उसमें गिर के मिल जाने का था
हम तो पागल आशिक़ थे, तुम कौन थे?
हम तो ज़मीं पर गिरे खार की तरह थे,
चाह तो गुलज़ार बन जाने...
चाह बस बारिश बन बरस जाने का था
नीचे दरिया को बहते देख,
उसमें गिर के मिल जाने का था
हम तो पागल आशिक़ थे, तुम कौन थे?
हम तो ज़मीं पर गिरे खार की तरह थे,
चाह तो गुलज़ार बन जाने...