...

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कुछ नहीं तो ऐसे बनो..
क्षणिक जीवन के अंतिम क्षणों में उन सूखे नैनों की आशा बन जाना..
अनकहे शब्दों को सुन लेना यूं ही
दबी आवाज़ों की भाषा बन जाना..
कलेजे में समेटना टूटे हुए टुकड़ों को
पोंछ देना आंसू दिलासा बन जाना..
अंधेरे में जाते उस बेबश राही को
सुखमयी उजेला जरासा बन जाना..

© Darkness whispers