...

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शोर
ये बड़े शहर के शोर की गजब है माया
चारो ओर शोर है पर अपने अंदर है सन्नाटा छाया
यहाँ ना जाने कितनी आवाजे दबा जाती
इस शोर से तो अपने अंदर की चीखे भी सुनाई नहीं देती
वो कानो को भाने वाला शोर कही अंतर्मन को झंझोर के रख देता है
मन पुकारता रहता है
पर... पर..
ये शोर फिर उस चीख को दबा देता है
इंसान मे मानो इंसानियत खो सी गयी है
इस चकाचोँद कर देने वाली रौशनी मे मानो नजर धुंधला सी गयी है
भीड़ मे इंसान खो सा गया
खुद को सबसे दूर होता पाया
रोज एक आवाज सुनाई तो देती,
उसे याद दिलाया करती की वो कौन है
पर कुछ ही देर मे वो भी कही फिर उसी शोर मे दुबारा दब सी जाती।
आज फिर से खुद को तलाश करने का ख्याल आया
पर....
पर फिर उसने खुद को उस शोर के सामने बेबस पाया
तरक्की की रह मे भी खुद को मायूस ही पाया
लौटना चाहा वापस पर....
पर समय को इस बार उसने अपने साथ ना पाया
उस शोर मे कोई ओर तो क्या
वो खुद अपनी पुकार ना सुन पाया
ये शहर के शोर की गज़ब है माया।