...

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मैं ही गलत थी
अनजान राहों से कैसे टकरा गई
एक अशिक़ी था मुझमें
उनको भुलाना नामुमकिन सी
इश्क़ की नैया कब डूब गई
कब्जा किया था मुझमें
फिर भी वो एहसास नयी नयी सी
जब रिवाजों से बाँधी है एक डोर
हर एक कह रहे थे पाकिजा
ना माना मैं, फिर भी मजबूर थी
हंसके भुला दी मैंने खुदको
जब उनके चाहत...