...

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छोड़ चला...
पैसे की इस दौड़ में शायद,
मैं कुछ पीछे छोड़ चला।
दौलत की इच्छा को लेकर,
माँ का आँचल छोड़ चला।
पैसे की इस दौड़...
अब सब कुछ होके भी माँ,
सब कुछ खाली खाली लगता है।
ममता से सींचा मेरा जीवन,
सुखी सी डाली लगता है।
अपने ही हाथों से माँ,
अपने सुख की गागर फोड़ चला।
पैसे की इस दौड़...
जब से तुझको खोया,
तबसे याद करूँ,तेरी डाट को माँ।
जब थी तू, मैंने कदर न की,
अब याद करूँ हर बात को माँ।
अपने जीवन की कश्ती को,
दुर्भाग्य की नगरी मोड़ चला।
पैसे की इस दौड़...
मैं भूल गया किस तरह से,
माँ तूने मुझको पाला था।
अब ज्ञात हुआ तेरे होने से
जीवन में एक उजाला था।
मैं त्याग के तेरी गोद को माँ
किस अंधकार की ओर चला।
पैसे की इस दौड़...





© AK. Sharma