...

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gazal e kafiya

आँख से गिर के कब उठा कोई
इस से बढ़ कर न है सज़ा कोई

ज़िन्दगी नर्क बन के रह जाये
वक़्त गर ऐसा आ पड़ा कोई

चाँद से चाँदनी का रिश्ता है
क्या अमावस से तम सजा कोई

रौनके-बाग़ सब गुलों से है
कब चमन ख़ार से हँसा कोई

जो सहारा बना कभी न यहाँ
आज वो ढूँढ़ें आसरा कोई

है भलाई का रास्ता दुर्लभ
मुश्किलों से यहाँ चला कोई

है सभी मर्ज़ की दवा कुछ तो
हो न पर इश्क़ की दवा कोई

इश्क़ करते हैं सब अमीरों से
हमको अब तक नहीं मिला कोई

आज के दौर में मेरा का
दोस्त तक भी नहीं हुआ कोई