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इंसान बन
इंसान बन!
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मूर्ति नहीं,जान बन
भगवान नहीं,इंसान बन।

धर्म की दीवार से अच्छा
किसी की छत,मकान बन।

जाति तोड़,रिश्ते जोड़
एक ही खानदान बन।

सामान्य में महानता है
महान नहीं,समान बन।

द्रोण के हाथ का
अब न तू सामान बन।

एकलव्य अंगूठा चूम कर
फिर से तीर कमान बन।

भूदेव न बन,श्रम की खा
जब भी बन,किसान बन।

जंग लगे तलवारों में
इतना गहरा म्यान बन।

नेकी कर के भूल जा
इतना तू अंजान बन।

हिंदू बन न मुस्लिम बन
बस सीधे इंसान बन।

~बच्चा लाल 'उन्मेष'