...

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उसका घर आना जरूरी था
वतन के खातिर निकला था, अपने दिल में जोश भरे,
देश की रक्षा करने को, जान की बाजी देने चले।

वर्दी में वो सजता था, सीना चौड़ा कर के वो चलता था,
दुश्मन भी थर-थराते थे, जब उससे आंख से आंख मिलाते थे।

पर युद्धभूमि में लड़ते-लड़ते, वो वीरगति को प्राप्त हुआ,
धर्म और देश की रक्षा में, उसने अपना सब कुछ त्याग दिया।

पर अब हर रोज़ उसकी यादें, दिलों में गूंजती हैं,
माँ की आँखों के आँसू, अब भी उसका रास्ता पूछते हैं।

काश वो लौट आता, उसकी हंसी फिर सुन पाते,
वो देख पाता अपने अजन्मे बच्चे को, फिर सब मिलके हंसते-खिलखिलाते।

उसका घर आना क्यों ज़रूरी था, अब समझ में आया है,
बिना उसके घर वीरान था, पर फिर एक बार घर गूंज उठा है,
जबसे वो तिरंगे में लिपट के घर वापस आया है।
© Dhruv Maheshwari