ये वो ज़ख्म हैं जो........
कभी तो तमन्ना ने जोर भरा था
कि आज़ तो वो मेरे बनके रहेंगे
वो आज़ जाने कब का रूख़सत है
और हम हैं कि अब भी उस कल में पड़े हैं
ये वो ज़ख्म हैं जो अभी भी हरे हैं ।
एकतरफ़ा नहीं था अगर गफ़लत भी हो तो
कहा था बयां करना अगर नफ़रत भी हो तो
हामी थी उनकी भी ये वो भी जानते हैं
ये नासमझ हे दिल कहां...