...

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मेरा बचपन


ना हौसला था आगे बढ़ने का
ना इच्छा थी कुछ कर गुजरने की
ना जानता था इस मतलबी दुनिया को
बस पहचानता था मेरी मां को
कुछ ऐसा ही था मेरा बचपन
ना खामोशी चुभती थी अकेलेपन की
ना बातें समझ आती थी लोगों की
खेलता था अपनी ही मस्ती में मस्त होकर
कुछ ऐसा ही था मेरा बचपन।