चित्त और मन.. एक द्वन्द.
चित चाहत अमृतसगुण
मन चाहत बहु भोग..
दोउ पाटन के बीच में
आतम ग्रस गये रोग..
चित्त सुपंथ चला निरहंकारी..
मन कुपंथ पातक अहंकारी..
भवसागर संसार निहोरा..
तन भयो वसुकि...
मन चाहत बहु भोग..
दोउ पाटन के बीच में
आतम ग्रस गये रोग..
चित्त सुपंथ चला निरहंकारी..
मन कुपंथ पातक अहंकारी..
भवसागर संसार निहोरा..
तन भयो वसुकि...