...

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तुम
तुम
मेरे जीवन में
मेरी साॅंस हो
धड़कन हो हृदय की
मेरी छाया सदृश
समय के हर पल में
मेरे साथ
मेरा स्व,मेरा निज,मेरा संपूर्ण
हो तुम।
तुमसे दूर
ख़ुद के अस्तित्व का
अस्तित्व कैसा?
क्षणिक कल्पना भी असंभव।
फिर भी
तुझसे दूर होना
नियति है यदि
तो बंधें होंगे, निश्चय
ईश्वर के हाथ भी!
निश्चय
आज दु:ख में
पश्चाताप में होगा
ईश्वरत्व पर ख़ुद।
यदि असंभव है
तेरा रूक जाना
मेरे साथ तो
तुम दूर जाना
अवश्य
मैं भी तुमसे दूर
अपनी तलाश में
तेरे हीं पीछे
कहीं और .....।
पर सत्य है
जीव अपनी अपूर्णता में
कई बार जन्म लेता है
अपनी संपूर्णता हेतु
और
मुझे पूर्ण करने
तुमको भी आना हीं होगा
मेरे पास
बार-बार
कोई विकल्प भी
नहीं है।


© guddu srivastava