नवजीवन का आगाज़.....✍
निकल आती है,
उस शाख पर भी नयी पत्तियाँ,
काटकर जिस शाख को,
माली कलम लगाता है,
🌿
कटना अंत नही, प्रारम्भ है,
नव नूतन नयी सवेर का,
ये शुरुआत है सघर्ष की,
खुद मिट्टी से पनपने की,
🌿
जब अतीत को भुला कर कलम,
वर्तमान की जमीन पर पाॅंव जमाती है,
फिर पानी की बौछारें,
ओर हवा के झोंके भी,
जब उसे हिला नही पाते,
तब अन्तर्मन की ताकत पर,
भीतर ही भीतर,
वो मन्द मन्द मुस्काती है,
🌿
अंत में भी इक नयी,
शुरुआत छुपी होती है,
हर उगती सुबह में इक नयी,
आस छुपी होती है,
वक़्त हर हालात में,
हमें लड़़ना सिखाता है,
ये कटकर भी खड़े रहने का,
जुनून ही तो है,
जो एक नन्ही सी कलम को,
पौधा बनाता है I
© 𝓝𝓲𝓼𝓱𝓪𝓷𝓽 𝓖𝓪𝓻𝓰.....✍
उस शाख पर भी नयी पत्तियाँ,
काटकर जिस शाख को,
माली कलम लगाता है,
🌿
कटना अंत नही, प्रारम्भ है,
नव नूतन नयी सवेर का,
ये शुरुआत है सघर्ष की,
खुद मिट्टी से पनपने की,
🌿
जब अतीत को भुला कर कलम,
वर्तमान की जमीन पर पाॅंव जमाती है,
फिर पानी की बौछारें,
ओर हवा के झोंके भी,
जब उसे हिला नही पाते,
तब अन्तर्मन की ताकत पर,
भीतर ही भीतर,
वो मन्द मन्द मुस्काती है,
🌿
अंत में भी इक नयी,
शुरुआत छुपी होती है,
हर उगती सुबह में इक नयी,
आस छुपी होती है,
वक़्त हर हालात में,
हमें लड़़ना सिखाता है,
ये कटकर भी खड़े रहने का,
जुनून ही तो है,
जो एक नन्ही सी कलम को,
पौधा बनाता है I
© 𝓝𝓲𝓼𝓱𝓪𝓷𝓽 𝓖𝓪𝓻𝓰.....✍