...

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रात में.....छत पर.....चाँद....

"कल रात मैं फिर गया था छत पर
वही तारें थे वही चाँद था वही आसमाँ था,
बस नया था तो तुम्हारे बारे में सोचना था
तुम्हे सोचते हुए ,तारो की निहारते हुए
मन्द मन्द मुस्कुराते हुए जाने क्या क्या सोचे जा रहा था
वैसे सोचना बहुत पुरानी आदत है
लेकिन इस बार कुछ अच्छा सोच रहा था।
एक अलग ही सुकूँ था आज जो पहले कभी
महसूस नही हुआ ।

आस पास मस्त बहती हुई ठंडी हवाओं का शोर
जैसे तुम्हारे मेरे पास होने...