...

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रात में.....छत पर.....चाँद....

"कल रात मैं फिर गया था छत पर
वही तारें थे वही चाँद था वही आसमाँ था,
बस नया था तो तुम्हारे बारे में सोचना था
तुम्हे सोचते हुए ,तारो की निहारते हुए
मन्द मन्द मुस्कुराते हुए जाने क्या क्या सोचे जा रहा था
वैसे सोचना बहुत पुरानी आदत है
लेकिन इस बार कुछ अच्छा सोच रहा था।
एक अलग ही सुकूँ था आज जो पहले कभी
महसूस नही हुआ ।

आस पास मस्त बहती हुई ठंडी हवाओं का शोर
जैसे तुम्हारे मेरे पास होने का इशारा कर रही हो,
मुस्कानों का शोर है जो खुद ही खुद से बातें करती हुई
बाहर आ रही हो।

हर बार की तरह चाँद को देखते हुए
उससे तुम्हारे बारे में बात करता हुआ,
तुम्हारी खैरियत पूछता हुआ
बहुत सवाल कर रहा था
क्योंकि वो चाँद एक ही समय मे हम दोनों को देख सकता है।

छत पर तारों के नीचे लेटे हुए जब आँखे बंद करता हूँ
तो
तुम्हारे साथ किसी अलग ही दुनियाँ में होता हूँ
ऐसी दुनियाँ जिसे न कभी देखा है
ना कभी सुना है
लेकिन वो दुनियाँ बस तुम्हारी मौजूदगी बयाँ करती है।

पर क्या करे ,ख़्वाब टूटता है,आँखे खुलती है
हम इस दुनियाँ में वापिस आ जाते है
और फिर आखिर हम भी सो जाते है।"
© सौरभ" शिवम"
@spring22