...

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नारी .....(कलयुग की)
कठपुतली ना समझो तुम...
ना बन जाओ तुम मेरी डोर...
मै इस आजाद सी दुनिया की
एक पंछी सी उडुंगी चारों ओर.....
मैं ना सहमी ना डरी हुई...
वो कन्या जो चुप खड़ी रही...
मै लड़ जाऊंगी अब सबसे ..
जब देखेंगे कोई मेरी ओर....
मै रोने की कोई वज़ह नहीं...
मै खुशियों का पिटारा हूं...
मै डूबी हुई एक नाव नहीं..
मैं खुद ही एक किनारा हूं....
तुम खुदा नहीं मेरे साहिब...
ना करनी मुझे गुलामी है...
जो सब कुछ अपना त्याग करे..
अब ऐसी ना कोई नारी है..
जो गलत सही में भेद करे..
वो ही अब सब पे भारी है....
अब हर शह की मै मात बनूं..
ना पकड़ सके कोई मेरा छोर...
कठपुतली ना समझो तुम
ना बन जाओ तुम मेरी डोर..