...

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द्वंद
ये मेरे अनुभव जनित छुपे आक्रोश किसकी कसौटी पर परखे जायेंगे
टीस मेरे मन की दूजा मन क्या समझेगा
है मेरे भी कुछ जख्म पुराने
जिनको भरने में एक उम्र गई
जो समय पर फिर हरे हो जाते है
फिर भी साहस नहीं खोया है
है कुछ मेरा व्यक्तित्व मेरा अपना सा जो गुमनामी से आहत है
है मेरे भी कुछ अपने सपने जो पूरे होने से पहले टूटे है
है अब भी तरंग भरपुर आसमान को छू जाने की
अब भी भरपुर जीने की चाह मिटी नही है अब तक
पर कब तक सोने के पिंजरे में
खुद के ही पंख नोच कर जीना है
कौन बताएगा मुझको !कि मुझको कैसे जीना है ?