...

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मन ही कुंजी है
मन के मनके सच्चे मोती थे नहीं पहचान सके
मन के दर्पण में ज्योति थी नहीं जान सके
मन के पटल में काई जमी थी नहीं छान सके
मन के मनन में अगन छुपी थी नहीं ताप सके
मन के घट में शैतान फितरत नहीं पहचान सके
मन के बहकावे रास रंग में हम बहक गये
मन के संयम का महत्व नहीं समझ सके
मन के अंधेरों में हम डूबते उतराते रहे
मन के पार अमृत कलश नहीं पा सके
मन की निर्मलता का रसपान कभी ना चखे
मन से मार्ग मिलेगा मोक्ष का ना समझ सके
मन को मार हम द्वार तिहारे ना पहूंच सके
मन की कुंजी है संयम से सहजता से स्वयं पर भरोसा रखना दृढ़ता से धैर्य से सत्य प्रेम के मार्ग चलना आहार विहार यम नियम का
पालन अनवरत करना यही देह तीर्थ बने यही
देह वृंदावन यही कैलाश यही घट में होय प्रकाश



© mast.fakir chal akela