आ गई विदाई की बेला
भीतर ही भीतर रोये जा रही
साँस को बह दबाये जा रही
मन ही मन वो हँसी मैरी
तालमेल अश्रुओं से बैठाये जा रही ,,,,,,,
बीत गया वो जो
वक्त पुराना था
बैचेन मन ,
आहट अपनों की क्यों न अब सुना रही ,,,,,,
यूं तो मन भर जाया करता था
बिना मिले ही कभी
रूत मिलने की नजदीक
क्यों न अब आ रही ,,,,,,
साँस को बह दबाये जा रही
मन ही मन वो हँसी मैरी
तालमेल अश्रुओं से बैठाये जा रही ,,,,,,,
बीत गया वो जो
वक्त पुराना था
बैचेन मन ,
आहट अपनों की क्यों न अब सुना रही ,,,,,,
यूं तो मन भर जाया करता था
बिना मिले ही कभी
रूत मिलने की नजदीक
क्यों न अब आ रही ,,,,,,