...

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एक उम्र
किस उम्र में आकर मिले हैं
जब उम्मीद ही छोड़ चले हैं

क्यूँ फ़िक्र सदा ही करते हैं
इस आदत से मुँह मोड़ चले हैं

अनजाने सफ़र पर कदम बढ़ा लिए
क्यूँ अब बीच राह में मिल पड़े हैं

ना आरज़ू ना ही कोई ज़ुस्तज़ू
अब क्यूँ ज़िन्दगी के तार छेड़ चले हैं

अगला पल कब तन्हा छोड़ दे
क्यूँ उम्मीद पर घर बना चले हैं

तन्हा दिल तन्हा उम्र गुज़ार दी
अब तन्हाई से नाता जोड़ चले हैं

ना आ अब इस दिल के आशियाँ में
आशियाँ को अब आग लगा चले हैं

© गुलमोहर