...

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4 line poem
दबी हुई आवाज को अब बाहर आ जाने दो..
दहशत के ठेकेदारो के दरबार अब बंद हो जाने दो..
किसी को किसी की फ्रिक नहीं यहां, तू खुद एक उम्मीद है,
कही तो कीचड़ पे कमल खिल जाने दो।

© Ashish kumar chouksey