...

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इंतज़ार की हद
कटती नही यें घड़ियां
ताक़ते रहते जो रस्ता
पर कभी कभी
इंतज़ार की भी हद हो जाती।

खोएं से रहते जाने क्यों
उनके ही खयालों में
आने के पहले से ही 
उनकी याद बहुत आती।

फूल बिछाए देर हुई 
चले अब मुरझाने को
खिल उठते अगर
आहट ही दस्तक दे जाती।

तरस रहीं निगाहें उनकी
झलक जो पाने को
यें आँखे हैं ऐसी
देखते देखते राह थक जाती।

खुद को तैयार करूँ खुद में
बाते दो चार करूं
मिलने की चाहत में
ऐसे ही टेन्सन बढ़ जाती।

सोंच के प्यार भरी खट्टी-मीठी
उनकी बातों को 
कभी होते मायूस कभी
ऐसे ही हँसी आ जाती।

वक़्त फिसलता जैसे जैसे
वैसे वैसे होती बेचैनी
आने की ख़ुशी है पर
मन मे उदासी छा जाती।

कमबख्त है इश्क़ ये कैसा
जो बीमार हुआ
पल एक लगता साल
ज़रा देर जो हो जाती।

कटती नही यें घड़ियां
ताक़ते रहते जो रस्ता
पर कभी कभी
इंतज़ार की भी हद हो जाती।

© ALOK Sharma...✍️

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